सेवासदन-Review

Sevasadan by Munshi Premchand

My rating: 5 of 5 stars


“रूखी रोटियाँ चाँदी के थाल में परोसी जायें तो भी वो पूरियां न हो जायेँगी।” लेख के प्रथम पृष्ठ की इस पंक्ति ने मुझे कहानी के लिए तैयार कर दिया। उत्तम उक्तियों से परिपूर्ण, प्रेमचंद की ये लेखनी हमें १९००-१९५० के अंतर्गत महिलाओं की अनेक समयों को हमारे समक्ष लेकर आती है जिनमें काफी समस्यों का समाधान अभी तक नहीं हुआ है। आज के दायरे में हम उस समय की सोच से काफी आगे निकल गए हैं तो ये ज़रूरी नहीं की प्रेमचंद की हर बात से हमारी सहमति हो। फिर भी मुझे ये लेख रोचक और मार्मिक महसूस हुई। इस गंभीर लेख में रोचकता “Magic Realism”, अर्थात वह वास्तविकता जिसमें अलौकिकता के अंश हो, के ज़रिये आती है। यह अलौकिकता कुछ आधुनिक पाठकों के लिए थोड़ी आसाध्य मालूम पर सकती है पर मेरे लिए वो कहानी का मुख्य अंश है। मूल रूप से कहानी एक महिला के वेश्याकरण की गर्त से उभरने की कहानी है पर सूक्ष्म रूप से देखें तो आपको जीवन के कई पहलु दिखाई परती है जिनके हम (आधुनिक जीव) अपरिचित नहीं है। ऐसी एक बात से में अपनी टिपण्णी का अंत करता हूँ: “सिद्धांत-पालन से प्रसन्न होने वालों की संख्या बहुत कम थी और अप्रसन्न होनेवाले बहुत”

मुझे ताजुब है कि इसपर एक मूवी तमिल में बन चुकी है पर हिंदी में नहीं।



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